अनदेखी अनजानीवो मनमोहक मनमानीवो प्यासी मैं पानीमैं वीणा वो वाणी !! इस क्षण मैं वैरागीफिर क्या सौन्दर्य जवानीमैं कर्म योग का भोगीकुर्बान करूँ अभिमानी पग

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क्या रूठे पल से रूठना  क्यों ओझे कल को भूलना ? मस्तक पर श्रृंगार है सबका  आभा जिसकी महि नहीं ! जब घनघोर घटाएँ हो और  किरणों

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