धरती पर जो स्वर्ग सुनहरा  वो घाटी मुरझाई है।  दशकों से जो खून की होली  खेल-खेल थर्राई है।  उस घाटी का वर्णन कैसे  करता पी

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जीवन एक किनारा है या एक समंदर का दर्पण  पल में रंग में रंग जाते जाने कइअक प्यासे गण! कुछ तुम से, कुछ हम से, कुछ इन दीवारों से, महक उठी है लीला अपनी पनघट के फौवारों से।  मुझको कोई मोह नहीं, काव्य कृत्य काव्यालय से  बिक सकता है अपना बोल किसी मर्म के प्याले से मुझसे कोई आश न

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