खूब बदली शाख हमने
और अपनी जात हमने |
जिंदगी का तौर बदला
और सुखी पात हमने ||
फिर खिला उपवन अनोखा
और बदली हस्तरेखा
मित्रगन का प्यार बदला
लोगों का व्यवहार बदला ||
बदले हैं सारे नज़ारे
आसमा में बदले तारे
दिल की धड़कन पर वही है,
जिंदगी खिलने लगी है…
याद करते वो फ़साना
जब हँस रहा था ये जमाना
तब कभी बदला नहीं था
मुफलसी में जी रहा था ||
एक छत के नीचे जाकर
रात दिन मैं पी रहा था
चंद सिक्कों को जुटाते,
उनके जूते सी रहा था ||
फिर कोई आवाज़ आई
दस्तक-ए-खौफनाक आई
पल में सुना हो गया सब
मानो मेरी आखिरी थी साँस आई !!
जिंदगी के दौर में था
वो सबब अनजान लेकिन
में नहीं हरा हुआ था
वक्त का मारा हुआ था ||
फिर खिली जब अर्थ-दशा
और खुलती सर्व-दिशा
हमने दिल को ये कहा
बदलेंगे हम अपनी व्यथा ||
गान बदले, तान बदले…
और बदले शाख हम
और तब तक बदलते रहे
जबतक न हो गए खास हम ||
कुछ तकल्लुफ वो करें
और कुछ परेशां हम रहें
पर बात जब पैसों की हो
तो हम सराफत क्यों करें… ||
ज्ञान अर्जन हम करें
और कर्म कि पूजा करें..
अर्थ पाकेट में भरें
और इसकी भी इज्जत करें ||
बस यही है गान अपना
बदलने में शान अपना
खूब बदली शाख हमने
और अपनी जात हमने ||
Author: Prabhat Kumar