मेरी इश्क है सजा

मेरी इश्क है सजा, मेरी जान को बता…

मेरी एक न सुने, वो करे है क्या खता?
अपनी बाते खूब कहे वो बेबस मैं लाचार
मन मंदिर में पूज रहा मैं चाहे मैं बीमार 
उसकी शौपिंग बंद हुई तो 
बिजली मुझ पर टूट गई।
उसकी पिकनिक छुट गई तो,
अपनी किस्मत फुट गई।
उसके नए नवेले नखरे,
ऑफिस अपनी छुट गई।
कुछ नगमों में मैं उलझा था 
अपनी धन्नो रूठ गई।
अब मैं उसको क्या समझाऊँ 
कैसे उसको मैं बहलाऊं ?

सुबह सुबह उठ कर के मैंने 
सुन्दर चाय बनाया…
सॉप, इलायची, कलाकंद 
आदि से प्लेट सजाया…
जाकर उसके कान में बोला 
उठ जा मेरी प्यारी Honey
बाहर थोड़ा  देख नयन से 
मौसम भी है कितना Sunny
मैं meetings को लेट हो रहा 
फिर भी करता बातें Funny
इश्क, मोहब्बत, प्यार जहाँ पर 
matter करता नहीं है Money
आखें खुलते स्नेह निगाह से 
वो प्यार मुझे दर्शाये…
मेरी भोली सूरत पर 
अब वो भी मर जाये !!
नजारा प्यार का है, प्यार के दो बोल कहता हूँ….
इन्ही बातों से अपनी जिंदगी का मोल कहता हूँ !
कभी जो लय बिगड़ता पत्तियों को घिस लेता हूँ,
उनकी रुसवाइयों को घोल दिल को सींच लेता हूँ।
गुजारा कैसे होगा प्यार का प्रपात के बगैर…?
कि उनके मनचले पतवार को त्यौहार बना लूं 
वो हम से लड़-झगड़कर जीतते जाएँ ये जहाँ…
और उनकी जीत को मैं गीत, गजल, प्यार बना लूं !

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