तुमसे facebook पर मिलना भी एक इत्तिफाक ही तो है

तुमसे facebook पर मिलना भी एक इत्तिफाक ही तो है…
वर्ना सुर से ताल मिलते तो आखें सजल और face पर रुमाल नहीं होता !
कहना चाहता हूँ की इस मेल के पीछे कायनात की कोई साजिस है।
वर्ना मीलों चलने वाला दो कदम चल कर लहूलुहान नहीं होता !
कल सकते में रह गया एक message पाकर मेरे मित्र
उसे गुलदस्ता दिया कोई app से ये हिमाकत थी मेरी
उसने इन तोहफे को मेरा फरमान समझ लिया
मिलते जज्बातों को मिलने न दिया अपमान समझ लिया
हमने तो महज चाहत की थी वो मजबूर-ए-मुहब्बत था
उसने हमे न समझा ये उनकी परख का अंदाज अलग था
अब शोर-ए-मोहब्बत को साक्षात् सबब देंगे
जो फोन पर कहते हैं वो दीद चमन देंगे !!

उनकी रुसवाई ने मुझको बौना बना दिया आखिर
मेरी चमचम सी कयादत को हिला दिया आखिर
कैसे करूँ बयां, मैं सिफारिस मैं अपने बेगुनाही का
मेरी मदहोश कदम ने मुझे लपेट लिया आखिर !!

Author: Prabhat Kumar

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