यु तो गली में चाँद है
पर चांदनी दिखती नही
जो गुमशुदा शादियों से है
वो खुशनुमा खिलती कहीं
पर आज भी कुछ रंग हैं
जो जंग खाती ही रही !
बस एक नजर की प्यास है
बचपन की तीखी आस है।
किस मोड़ पर किस्मत
मिलाएगा हमे एक ताक पर।
अनजान पथ पर या किसी
मयखाने के आवास पर।
जो कह सका न उन दिनों
वो राग दिल में वास है।
अब खुद पे मुझको आस है।
तुम खिल रही बगिया में जो
उस उपवन पे मुझको आस हैं।
हर तेरी खुशियों से जुटती
आज मेरी साँस है।
तुम खुशनुमा हम आशातीत
देखें क्या अगली बात हैं।
Author: Prabhat Kumar