मौत से बड़ी सज़ा


मौत से बड़ी सज़ा क्या है?
क्या क़िसी दुर्घटना के कारण अपंग हो जाना…
सबसे बड़ा दुर्भाग्य है?
मौत को क़रीब से देखना कैसा लगता है?
अपनो का हमेशा के लिए दूर हो जाना…
कैसा लगता है?
इंसान की दुःख की हद क्या है?
और उससे भी ज़्यादा दुःख सहन करता इंसान क्या है?
दर्द अगर शारीरिक हो तो इसका इलाज है,
मन में हुई है विकृति, अब माजरा क्या है?

ये इंशान अपने आप से इतना घिरा हुआ है,
जो ग़ैर है उसके लिए कोई आरज़ू नही।
जो स्वप्न थे बहके हुए सब टूट चुके हैं,
एक मौत का फ़रमान है, सब रूठ चुके हैं।
जो कहता था मेहनत से मिलती है हर कड़ी
वह भी भरोसे भाग्य के सहमी है एक लड़ी।
यूँ मिन्नतों की मौत जो हो गई मेरे मौला,
आवाम मेरा झुलस गया एक रोज़ ख़ाक में
हम हो गए लावारिस अब अपने ही राज में।
कितने लाचार हैं हम अपने ही नगर में,
एक दूसरे के प्यार में – अपने ही घर में।

जनाज़ा यूँ बेख़बर निकलेगा मेरा अनायास
कभी सोचा न था प्रभात, रवि की दीर्घ रात
अब तो महज़ एतवार है साँझा की राह पे,
तारों की शहर की, ख़्वाबों की रात पे।

सूरज ने सताया है, चाँदनी से ही आस की है।
दिन को घना कोहरा है, रातों को जब साँस ली है।
आज सूरज बेवफ़ा है, चाँद ने ही रोशनी दी है,
फ़िर न कहना चाँद को कुछ, यही शीतल और सुन्दर है।

Author: Prabhat Kumar

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