एक भाग्य था एक सितारा पाटलिपुत्र में गुलशन प्यारा
कुल का प्रीतम एक धरोहर वह सुगम मनोहर प्रेरक तारा
जो मंजिल से अनजान चला ले मन का ज्ञान संवार चला,
कुछ पल जो वैराग्य रहा हो? कुछ पल सिक्कों का ताज रहा।
वो एक मनोहर गाथा है या प्रेम गीत अभिलाषी है
उसकी चंचलता शोक सम्य और कला अलसाई है
वो छोड़ चला इस जग को जब मैंने जन्म मनाई है।
ये कैसी क्रीड़ा है, कैसा मंथन, कैसी पीड़ा है…
ये नाम, नगर और नाटकपन से ऊपर है कुछ।
कुछ है जो जीने को एक द्वन्द दिया करता है।
तेज़ी से आगे बढ़ने को वो संकल्प दिया करता है।
उसकी सुरत में मुझको मेरा अंश दिखा करता है।
तुम मेरे हो आदर्श तुम्हें हम यु विलुप्त ना होने देंगे,
तुम देश के बेटे हो, हम तुम पर अमल करेंगे…
कुछ अलग करेंगे, हम भी एक उड़ान भरेंगे नभ में,
तुम निर्मल हो, तुम कमल हो, हम अमल करेंगे।
मासूम नजर का भोलापन, ललचा के लुभाना क्या जाने
जो हर बार निशाना बनता है, वो तीर चलाना क्या जाने।
मदहोश नयन और मस्त मगन, जाने कितने तेरे नाम हुए,
सतरंगी अभिमान तेरे और सत-सत पीछे बईमान हुए।।
पटना से लेकर दिल्ली तक, और मरीन ड्राइव के बीच
तेरी प्यारी-प्यारी हरकत है जो सबको लेती खींच
कितने ही सुरमे राख हुए और कितने जलकर खाक हुए,
तेरी एक कलाकारी की महक और फैंस सवा लाख हुए।
पीके में वो भद्र रोल था पाकिस्तानी का किरदार
फ्री में करली सारी सुइटिंग्स, पाने को वो भव्य अवतार।
धोनी की क्या पोल खोल दी उसके जिगर का टुकड़ा बन,
छा गए भैया पूर्ण जगत में कप्तान का वो किरदार।
काम किये न पूर्ण जगत में, महिमा तेरी है अम्बार…
थोड़ा में मन मोह लिया तू, स्तुति करता मैं बारम्बार।
तेरे करियर से गति से अब चिंतित है ये पूर्ण जगत
देख करिश्मा क्या होता है, होता है अब क्या क्या खपत।।
~Prabhat Kumar