दो न्याय अगर तो आधा दो, पर उसमें भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पाँच ग्राम रखो अपनी धरती तमाम।
हम वही खुशी से खाएँगे
परिजन पर असि न उठाएँगे।
कांग्रेस वह भी दे न सका, आशीष समाज की ले न सका
उलटा अन्ना को बाँधने चला जो था असाध्य साधने चला।
अन्ना ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया
रामलीला मैदान पर सभी दिग्गज डोले, जनता सारी कुपित होकर बोले
जंजीर बढ़ा अब बांध हमे
हाँ, हाँ कांग्रेस अब बाँध मुझे।
यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है
मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।