(1)

फूल-सा सुन्दर कोमल मन

चंचल चितवन लागे कंचन
मोरे पुत्री मोरे विराजत है..
क्या खूब तिलक सह नव चन्दन ||
(2)
अधरों पर हो मुस्कान सकल
नयनों में काजल चम-चम-चम
अदभुद बाला एक पलने में
क्या खूब खिले वह नन्हा बदन ||
(3)
उसके स्वर्णिम कल को लिखता
वह कल्पित कल चंचल जीवन
नजरों में तेरे संसार सकल
वन में ज्यों मृग करता क्रंदन ||
(4)
उसके नवजीवन में संस्कृत
वो पुण्य सुरों का एक सृजन
वो फलदायी वो करुणामयी
पुष्पों के रस में बसी उपवन ||
(5)
मोरे पुत्री मोरे विराजत है
वो एक सुहागन की कंगन
है उसमे पुरा प्यार निहीत
वो किसी पुत्र से नहीं है कम ||
Author: Prabhat Kumar

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