बाबा जी का दरबारी ढाबा

रोज नए बाबा उग आते
उनकी क्या स्टाइल है
सिंघासन पर बैठ गए
लोगो कि लम्बी लाइन है

सारी जनता मुर्ख यहाँ पर
पैसे देकर टिकट कटाती…
बाबा जी की तीन आखें है
उनसे अपना प्रश्न रिझाती..

बाबा जी अंतर्यामी है…
सबकुछ उनको आता है,
लोगो से वे funds लिए क्यों
वो पैसे क्यों नहीं उगता है…?

शक्ति उनकी सब पर चलती
खुद पर क्यों नही आता है…?
मीडिया में बदनाम हुए क्यों ?
जब इश्वर से नाता है…?

झूठे वादे, झूठा व्यवहार
ऐसा चलता उनका व्यापार
देख कर लगता है हमको 
यह जनता है कितनी लाचार

कष्टों से जो घिरे हुए हों..
उनकी बातों में आ जाते,
वे पैसो के कठपुतली हैं
कुछ अद्भुत राह बता जाते

आत्म बल था गिरा हुआ
वो उसको आज उठा देते
जो कल तक हारा करता था,
उसको विश्वास दिला देते…

यह विश्वास ही हिम्मत है,
इसके अंतर ही जन्नत है|
परिवर्तन तो होना ही है…
अपनी ऐसी एक मन्नत है…

फिर हम ऐसा क्यों पाप करें
एक ढोंगी पर विश्वास करें
आओ कुछ ऐसा पाठ करें
सीधे हम रब से ही बात करें…

बेहिसाब जख्मों ने रुलाया; घने कोहरे में कोई हमे बेघर कर दिया
दिखाई कुछ न देती थी और वे हमे ग्राहक मान अजमाते रहे…
हम उन्हें देवता समझ उन्हें उसी घने कोहरों में बस निहारते रहे…

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