वो मित्र – तू हमराज है

सारी दुनिया का अजूबा ताज है
मुश्किलों में हो वतन तो हिंद एक आवाज़ है
दिल दुखे! गर्दन झुखे ! तो बस तुझी पे नाज है…
दर्दे दिल कि जो दवा वो मित्र – तू हमराज है !!

ऐ वतन मैं दे चूका हूँ तालियों की आतिशी 
मिट चूका तुझ पे सनम – दीवानगी ये आशिकी 
यार मेरा प्यार है – संजीवनी और जिंदगी 
सशक्त मेरी प्यास है – और श्रोत इनकी सिंघिनी 

खोने को है कुछ नहीं पाने को जग सशस्त्र है 
ये साधना अपनी नहीं, यह एक योगी, क्षत्र है 
आकासवानी कुछ कहे, शैतान खुद को ही महे 
विस्तार जैसा हो सहर, ये अग्नि है ये इत्र है !
मस्ती महादसा में हो, वैराग्य महासभा में हो 
जो मन में हो वो शुद्ध हो, लेखन भले अशुद्ध हो 
विचार, मन, चिंतन, मनन सर्वदा सुखी रहे…
अंध-प्यास, धर्म-त्रास, अशुद्धता तपित रहे !

इंशान से इंशान का प्रेम पर प्रकाश हो!
प्रीतमय जिंदगी में स्वर्ण का आभास हो!
मुश्किलें कतई हुई, तुम निडर डरो नहीं,
राम नाम सत्य है और सत्य आस्था भी है!
Author – Prabhat Kumar

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