ऐ देश! तेरा रंग बदरंग हुआ जाता है….
कोई जाति का दाता, कोई धर्म विधाता है।
फिर मयखाने तक मैं जाता हूँ, कुछ टटोलते हुए,
सब रंग बिरंगे, मदहोश नयन वाले, मतवाले
पूछा जो बताओ तेरी क्या जात, धर्म है?
क्या तेरी क्वाटर और वोडके में भी आरक्षण है?
खिलखिला उठा समां मेरे वाहियात-से प्रश्न पे,
बोल उठा – ये मयखाना है पागलखाना नहीं
मस्ती के आगे कोई विधान नहीं होता
हमारे यहाँ दो धर्म है एक साकी दूजा पीनेवाला
और उसमे भी कभी जो जोर दखल होता है
तो साकी गम-शुदा और पीनेवाला रोता है!
दोस्त ! फिर भी रंगीन है हमारी दुनिया
और मस्ती का जुआ भी ऐश से होता है।
Note: We are comparing real world with madhushala keeping only positive points of madhushala in mind. We do need to disregard the ill culture brought about or induced by drinking habit.
Author: Prabhat Kumar