(1) फोकट का फाटक खुलवाविस्तार करूं मैं बेतालासाकी से शुरूआत करूं मैंदे संतों को मय-प्याला,*ऐसा स्वांग रचूं मैं पी केअपने इस मदिरालय मेंझुम-झुम सब नाचें

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दामिनी देश की गरिमा है करोड़ों के मन का उबाल है पत्थर में दैविक उछाल है कानूनों पर घिसती तलवार है संवेदना का साक्षात्कार है युवाओं की ललकार है…दामिनी घायल

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यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता ! ********************************** नर-नारी का विषम पात्र है मन में,  एक कलश पर अलग है प्याला… अबला नारी दीन-हीन कृपा-विहीन, 

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