काश्मीर के दिव्य शिखर पर एक तिरंगा प्यारा है।

धरती पर जो स्वर्ग सुनहरा 
वो घाटी मुरझाई है। 
दशकों से जो खून की होली 
खेल-खेल थर्राई है। 
उस घाटी का वर्णन कैसे 
करता पी के प्याले से,
काश्मीर की आग बुझेगी 
जाने कौन निवाले से। 
भारत माँ का आँचल है ये 
पुरखों की सम्पत्ती है। 
काश्मीर कोई कर्ज नहीं है 
जन-जन की अभिव्यक्ति है। 
जब आतंकी तोड़ सुरक्षा 
काश्मीर में घुस जाते हैं,
तंग जिहादी, विकृत मंशा 
बच्चो में भी बो जाते हैं। 
युवा-युवा का मन घबराता
हिन्दू-मुश्लिम फर्क कराता,
बंदूकें और गोला-बारी 
मानो इनका कर्म जताता। 
घायल हुआ है ऐसे जीवन 
कइअक मर्म फ़सानों से। 
और सुरक्षा कर्मी की भी  
बलिदान के बाणों से। 
काश्मीर जो सदियों से इस 
हीम के आँचल में चमके। 
शिव के शिर्ष से गंगा निकले     
मट्टी भी पावन महके।  
उस कश्मीर पर पे कोई देश 
सेना का जोर लगा भी दे,
पहले सरबत, दूध पीला 
पीछे खंजर दिखला भी दे। 
हम मानवता के पुजारी है 
और हक़ के पूर्ण अधिकारी है। 
देश भक्त हम नहीं डिगेंगे,
हर हरकत को दल देंगे। 
और युद्ध जो हुआ कभी भी,
सर्व-राष्ट्र को हक़ में लेकर। 
बिना किसी परमाणु परिक्षण 
पूर्ण काश्मीर गह लेंगे। 
किसी से कैसा दुर्विवाद क्यों 
ना करते किसी पर हम प्रहार,
आजा भाई कोई देश तू 
करना हमको, बस व्यापार !!
काश्मीर के मुश्लिम भाई 
अपने कोई गैर नहीं हैं। 
और वहां के पूज्य पुजारी से 
हमको कोई बैर नहीं है। 
कैसा भी शाशक होगा,
बस हिंदुस्तान हमारा है। 
काश्मीर के दिव्य शिखर पर 
एक तिरंगा प्यारा है। 

— anonymous

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