मेरी मंजिल

पहली दफा कॉलेज कैम्पस को देखकर एक ख्याल आया।

एक जोड़े को बाग में देखकर दूजा ख्याल आया।
*
इस कदर एक-एक कर ख्याल आते रहे
कुछ ही लम्हों में इमारत भी बन गए।
पर मुझे टॉप पे जाना था,
इसलि़ए इसलिए मस्त-ए-जवानी के
जरूरत बदल गए।
*
दिल-ए-लगन से मस्तिष्क का संदुक भरा।
एक अच्छे से कॉलेज में मुझे भी दाखिला मिला।
अब जनाब जिन्दगी क्या, आइना क्या?
दोनों तरफ हम ही हम और हमारे ही सीतम।
और इससे पहले इमारत की एक सीढ़ी भी चढ़ें
भूल गया वो अपने बीते पल और सारे गम।
और इससे पहले कि किसी की मुझसे नजरें लड़े
चुन चुका था अपनी मासूका को मन ही मन।
*
पर कम्बख्त-ए-वक्त का नजाकत देखें…..
जिस पर मैं फिदा हूं उस हसीन पल के लिए
निकली वह किसकी महबूबा?
मेरा वो मित्र-ए-हमदम…
क्या कहता अपने मित्र से
न थी इतनी हिम्मतपर कैसे भूला दुं उसे??
करू क्या आप से जिल्लत??
*
यह सवाल मेरी जिन्दगी का सबसे अहम सवाल है
अनेको दास्तान होगी…
किसको मेरा ख्याल है?
ईमारत के बीच में हूं लिफ्ट बंद हो गई
आधी मंजिल पर अटक गया,
राह पुरी दर्ज न हुई।
*
सारे रंगों को रंगने वाला श्वेत रंग में रंगा है
दिल की ज्वाला भीषन सही शीत लहर से पंगा है।
पल पल अपना भाग्य लीखे वह क्यों ढल जाए
आधे पथ से लौट गया तो मंजिल क्यों न पाएं।
*
कहानी इसलिए खत्म नहीं हुई है,
खिलखिलाती हँसी पर नई इमारत बन गई।
मुझे मंजिल पर अब भी जाना है…
इसलिए कहानी तो वही है,
एक्ट्रेस बदल गई!!!

Author- Prabhat Kumar

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