खो गया खुद आज मैं

मैने खोया एक खुशी एक नाज़ एक अंदाज खोया
खो चुका मैं ताज उसका, जिन्दगी का राज़ खोया

उसने क्या खोया?
उसने खोया प्यार मेरा और एक संसार खोया
मेरा जीवन था उसी का, उसने एक अधिकार खोया

खो गया खुद आज मैं उसकी अनोखी चाह में
एक पतंगा ज्यों मिटे एक लहलहाती आग में

वो खिल रही मुस्कान है, अनभिज्ञ वह अनजान है
धरती उपेक्षित भी हुआ और आसमां भी रो पडा…
फिर भी न जाने कौन सी वस्तु में उसका ध्यान है?

क्या पतंगा मूर्ख है? बलिदान उसका मान्य है?
दिल टूटता हो हर घड़ी तब प्रश्न यह सामान्य है…


Author: Prabhat Kumar

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