है मेरा एक सपना
काश होता,
छोटा-सा,
घर मेरा अपना।
होती घर में..
शांति ही शांति
शोभा होती,
होती उसमें कांति।
हरदम उमंग होती
इसमें न दंग होती
घर की चारदीवारी में..
खुशियों की रंग होती।
सदस्यों का साथ होता
कभी न बकवास होता
ऐसे में घर का
हरपल विकास होता।
यदी होती भी खामियां
तो उसका उपहास होता
सदस्यों के साथ से
सदा इसका नाश होता।
नारी का सम्मान होता
बड़ो का मान होता
छोटों को प्यार और
सबका कल्याण होता
देश के विकास में
इसका योगदान होता
ऐसे में यश का
हर पल प्रसार होता !
विश्व में न घर कोई
इसके समान होगा।
आशा की पूर्ती में
भलो सालो-साल होगा।
धैर्यपुर्वक मेरे द्वारा
इसका इंतजार होगा।।
Written in 1998 by Prabhat Kumar