एक चंचल चतुर चकोर नार
जब दे गई अक्ष पर जोर वार,
अब मन मस्तक सब घुम-घुम
सपनो में रहे उसे ढूंढ़-ढूंढ़
नज़रों की नजाकत किसके लिए
लो उन से ख्वाब में मिल ही लिए
हम कान्हा वो राधा थी
मिलने में नहीं तब बाधा थी
हम बंसी बजा के पुकारा करे
वो घूँघट तान के आया करे…
नयनो से सजे संसार महल
जो दिल के कोने में छाया करे
ऐ यार जमाना तंग हुआ
मेरी स्वप्न का कैसे अंत हुआ?
मस्ती पे क़यामत के सदमे वो तरस भी खा कर आया करे?
हम सुन्दरता पर काव्य लिखें औ राग निराली गाया करें….
Author: Prabhat Kumar