चाह रहे अम्बार


मैंने जो भी यत्न किया वो पाया आखिरकार !
पाकर भी संतोष हुआ न, मैं याचक लाचार !!
अबकी कोई आश नहीं बस ख्वाब रहे दरबार,
हाला प्याला सजे रहे और बना रहे व्यापार !!
*
न कोई शिक्षा, न कोई शक्ति, न सूक्ष्म संस्कार 
फिर भी नयनों में थामे – अटल अखंड संसार !!
अबकी कोई आस नहीं – हो अंतर का विस्तार 
एक अलौकिक मिलन प्रिये औ चाह रहे अम्बार !!
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