मिलती हो उम्मीद जहाँ वो एक नजर की आँधी है।
उम्मीदों की रौनक में कोई कान्हा है कोई गांधी है।
कोई नहीं है इतिहासों सम आज यहाँ लड़ने वाला,
वर्तमान की बाजी हारे कल्पित कल में क्या होगा ?
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कुछ खट्टी-मीठी बाते है और बूंदा बांदी की आभा है।
कल होगी कोई उल्फत या कोई संग्राम की बाधा है ?
बस एक सूर्य ही काफी है रौशन करने को मेरे आँगन को,
फिर चाँद बनाया है प्रभु, तो चांदनी की आस तो होगी ही !!
Author: Prabhat Kumar