विस्तार करूं मैं बेताला
साकी से शुरूआत करूं मैं
दे संतों को मय-प्याला,
*
ऐसा स्वांग रचूं मैं पी के
अपने इस मदिरालय में
झुम-झुम सब नाचें गाएं
करुणा विक्रय कर डाला
शत्रु को दे विश्वास नया
साथी को गौरव की माला
*
साकी के स्पर्श मात्र से
करुणा मय का भाव बढे
और लुटाता पी के पागल
भयभीत हुआ मय का प्याला
पथिक ढुण्ढता प्रीतमय मय
दुर्लभ थी पर साकी बाला
*
चारो ओर अंधेरा-सा था
मयखाने के प्रांगन में
मादक हाला प्रेम गीत से
लुटा रहा मैं मधुशाला।
बेहोश हुआ पीने वाला
साकी के सर पर बादल
क्या बरसेगी काली हाला?
*
हुआ अचम्भित सोने वाला
स्वप्न भयावह था तुफानी
मदिरा मेरे कण-कण में था
गुंज रही थी मधुशाला।
या हो कोई कितना काला
पीने की उसकी मंशा हो
साकी से पावक हाला
*
न जाति कोई पूछेगा
एक भाव से वितरित होती
सबको मेरी मधुशाला।
मैं पूज रहा मय का प्याला
मदिरा मेरी शक्ति है
मैं क्यों ढुण्ढूं अल्ला ताला?
*
आवे करलें प्यार अभी से
मदिरालय, मय, साकी से
मंदिर मस्जिद नहीं मिलेंगे
पग-पग अपनी मधुशाला।
छिन लिया मेरा माला?
साकी पर है विश्वास मुझे
मैं जपता हूं बस मधुशाला;
*
आकर मदिरालय में मेरे
तुम कैसा भी पाप करो
पंडित तुमको मूढ़ जानकर
सुरभित यह पावन माला
मयखाने का पूर्ण भाव है
भावों में भीगी मधुबाला।
*
बंधना फिर भी न चाहूं मैं
भाव भरे इन बाहों में
मुड़कर थोड़ा देख इधर
कोई कहता पीने वाला
कोई समझे रंक मुझे
कोई समझे काजल काला
कहते-कहते समझ गए वो
मादक मय की महिमा को
भूला पी के मैने कैसे
सर्वव्यापी मम मधुशाला।
भाव भक्ति की है हाला
कर्म-भूमि में कीर्ति कूजे
स्वप्न लोक में सुरबाला
*
आदर्शों से घिरा हुआ है
रिस्तों का यह मदिरालय
सुसंस्कृत संचारों का यह
सकल विश्व है मधुशाला।
पदच्युत हुआ मय का प्याला
साकी भी सम्मोहित हुई
अभियुक्त बना पीने वाला
*
शक की सुई घुम रही है
कुछ तो मय में मिश्रित है
मैं ढुण्ढ रहा अवसादी रंग
रंगोली मेरी मधुशाला
देख रहा मैं मय प्याला
साकी को सम्मोहित करता
मैं साधक भोला भाला…!
*
अबकी प्यास बुझानी ही है
पी के मय मयखाने मैं…
तूफानों में बसा शहर है
कार्यक्षेत्र यह मधुशाला!!
~***~
(15)
पी के सोया सुस्ती में
थी अंधकार में मय प्याला
दुनिया सारी रूठ गई
था स्वप्न भयावह भय वाला
*
कितना भी तुम याद करो
साकी सारी अदृश्य हुई
करो तपस्या पीने वालों
स्वपन लोक में मधुशाला।
(16)
पी के उठा जब मस्ती में
साक्षात् खड़ी साकि बाला
मस्ती में सब झूम रहे थे
धरती, अम्बर बादल काला
*
मदिरा मुझको मोह रही थी
मैं तो अब भी प्यासा था
स्वर्णिम प्याला चीख रहा
बहकाता मुझको मधुशाला।
~***~
(17)
कुछ भूल हुई मुझ से मानो
और छीन लिया मय का प्याला
कुछ पाप हुआ तुम से मानो
और थमा दिया विष का प्याला
*
साकी से अपराध हुआ तो
कैसी सजा उसको देंगे
नहीं पियेंगे उन से मदिरा
इतराय अपनी मधुशाला।
(18)
एक शोर हुआ अनजाने में
एक चोर चुराया था हाला
सब पूछ रहे मयखाने में
ये किसने खोला था ताला
*
बेचैन वहां पर बैठा था
हर मूर्क्षित पीनेवाला
कौन चोर है कौन सयाना
भ्रमित हुई थी मधुशाला।
~***~
(19)
इतराता पथ पर जाता
रटता प्याला, मादक हाला
कहकहे लगा कहता जाता
वह एक पथिक पीनेवाला
*
वह पी के काव्य सुना जाता
साकी का धर्म निभा जाता
श्रोता सब बस पीते हैं
गौरव होती है मधुशाला।
(30)
एक शबनम जो चमक रहा
फूलों पर छलक रही हाला,
बस मौके की थी आश मुझे,
साकि को मित्र बना डाला..
*
अब रातो-दिन ही जाम मिले
साकि से रस का पान मिले…
वो ऐसी अपनी दिव्य-सखा
ला रख दी लब पे मधुशाला !!
~***~
(31)
भ्रष्ट भुवन के मंडल पर
जब कीर्तन की साकी बाला,
इतिहासों सम आज लड़ा
और चली बगावत की भाला |
*
कुपित कुशाषण घायल होता
जनता की सरगर्मी से,
अर्थ दशा जब सिमट रही थी,
प्रलय-धारिणी मधुशाला ||
~***~
(32)
सजे न मस्जिद और नमाजी,
कहता है अल्लाताला ,
सजधजकर, पर साकी आता ,
बन ठन कर , पीनेवाला !
*
शेख कहा तुलना हो सकती
मस्जिद की मदिरालय से,
मस्जिद मेरी नयी सखा है
चिर परिचित यह मधुशाला !!
(33)
(34)
एक भिक्षुक का सम्मान नहीं,
(37)
(38)
(39)
कोई दूर निशाना साधे है,
(40)
बैठे-बैठे ज्ञान की गंगा,
~***~
(41)
मेरी सखा, मेरी जान प्रिये
(42)
खोई नयन में खोया प्यार
लेकर आई साकी बाला !
मृदु भाव में खिला कमल
माधुर्य हुई मादक हाला !!
*
जो भी मित्र हितैसी मेरे
दिल में भेद किये जाए….
और इश्क में लुटता जाये
पागल मनवा मधुशाला !!
~***~
(43)
मदहोशी के आलम में मैं
शेर-ए-मुहब्बत लिख डाला…
एक मोरनी नाचे मस्ती में
और खूब झूमी साकी बाला !
*
मायखाने की साजिस थी
एक शोर हुई फिर महफ़िल में
नयन-नयन से डोर बंधी
और हलचल है अब मधुशाला !!
~***~
(44)
निशा निमंत्रण कहे सिपाही
मंत्री-मंडल, शोर-ए-घोटाला।
नारी चीखे दुर्बल भाव से
सब मूर्क्षित हैं पीने वाला !!
*
आज मगर आवाजे गूंजेंगी
जग, प्रस्तर, पेड़, पहाड़ों तक
हर मूर्क्षित प्राणी को गंगा
एक अमृत पान है मधुशाला !!
~***~
(45)
गंगा जल से पाप धुले
मदिरालय में कैसी हाला?
हरि वंश की तबला बाजे
सब दंग हुआ पीने वाला !
*
नदियाँ सारी सुरभित होती
मदिरालय की उन्मादों से
क्या भला है? क्या बुरा है?
झर-झर झरती मधुशाला !!
~***~
(46)
नगर नगर की एक डगर
सुर संगम हो साकी बाला
ध्वनि की कुजन, कीर्तन हो
सब मग्न हो चले मतवाला
*
एक मधुर स्वर मेरा भी होता
फिर हर मंथन से रस होता
क्या विष है और क्या अमृत,
हर पान पीयेगी मधुशाला !!
~***~
(47)
मौन मन और मौज मन
सब मौन हुआ पीने वाला।
मनमौजी जब मौन हुआ
क्यों हुई बेचैन साकी बाला?
*
मौन मन से सिद्धि मिले
मौज मन से मजा बहुत
ऐसा मौन बनाय दो प्रभु
मौन मौज हो मधुशाला !!
~***~
(48)
यम और उनके दूतों को
जब खूब पिलाया मय प्याला
वो उग्र बहुत उदार हुए
और बक्श दिया मेरा ताला।
*
तब तक होगी आँखमिचौली
दूतों के इन भूतों से
जब तक पी लूं पूरी गंगा
यह हूंकार है मधुशाला।।
~***~
(49)
जब एक तिरंगा लहराए,
मन हर्षित औ हर्षित हाला।
नारों में एक नया नारा,
“भ्रष्ट जगत को रंग दे काला”।
*
हाला-प्याला बेच, सुराही
जब बेच चला पीने वाला।
एक सुराही गंगाजल सी
लुटा रही है मधुशाला !!
~***~
(50)
घर भी सुना, उपवन सुना
सुना अम्बर, बादल काला
बरखा पानी, मादक वाणी
खूब सजा मन में प्याला
*
प्रिये! प्रेम से पीना मुझको
मैं एक सुराही जीवन का
कभी दवा तो कभी दुआ
विरह-मिलन है मधुशाला !!
~***~
(51)
सत्य शिवा है, सुन्दर है!
मन में मादक, वादक हाला !
दिल में फिर से गान उठा –
“मोहक सबसे मेरी प्याला !”
*
हालों में इन प्यालों में,
मस्ती का मोल लगा बैठे,
मादकता में डूब कही हम
चले धाम को मधुशाला !!
~***~
(53)
मैं तब रूठा, मधुघट छूटा,
बस रूठ चली जब मधुबाला
मन को मौन बनाकर रोया
नयनो से छलकी तब हाला
*
“क्या मुझे मिलेगी मधुबाला”?
वो स्वप्नलोक की आभा
मृदु स्मृतियाँ, अद्भुत कृतियां,
एक सृजन है मधुशाला !! ५३!!
~***~
(54)
मेरी अंतिम साँसों से भी
महक उठे पावन हाला,
अंतिम नज़रों में छलके,
मादक मय मधु का प्याला
*
मेरे शव में असंख्य जीव,
नारे में हस्ती जवानी हो
“राम नाम है सत्य” बदलदो
कह दो सच्ची मधुशाला।।54।।
~***~
(55)
जातक सत्य का साधक हो
एक अतुल मंत्र की हो माला
तीखा हो व्यवहार कभी जो
अक्ष में रम जाये मृग छाला
*
भू-सौंदर्य समाहित हो जब
साकी भरे सुराही को,
नव भारत के नव पौरुष से,
संस्कार सबल हो मधुशाला||55||
~***~
(56)
तेज बहुत है, बड़ी जुझारू
मय वितरण करती बाला !
उसके भी अरमान बड़े हैं,
कर में न मय, हो वरमाला !!
*
आओ सुन्दर मयखाने का
आज अभी निर्माण करें….
नारी का सम्मान करें हम
मन से सींचो मधुशाला !!
~***~
(57)
जब नयन निद्रा में विलीन हो,
ख्वाबों में मिलती रहे मधुबाला।
जब कर में मुद्रा भी विलीन हो
फिर क्रय न किये उत्तम हाला।।
*
मनसा हो पीने की सुराही से
तो मधुघट से मधु भरकर ले ले
जीवन की प्यास से तृप्ति मिले
साकी के कर में हो मधुशाला !!
~~***~~
(58)
मैंने ठानी थी नहीं कभी
मचलेगा मन, पीलूं हाला
मैंने ठानी थी कभी नहीं
दिल में बसेगी मधुबाला !!
*
फिर किसकी नादानी थी
या योगी मन बेगानी थी
या मैं सृष्टि का योग कहूं,
या यही पहल है मधुशाला !!
~~***~~
(59)
मयखाने में एक पुजारी,
है गंगा जल पावन हाला
साकी का स्पर्श मात्र ही
भर देता मय का प्याला !
*
फिर मदिरा का पान किया
तो कैसी नशा हमको होगी ?
कभी थिरकता कभी सिसकता,
ह्रदय मंथन है मधुशाला !!
~~***~~
(60)
आस्तित्व ही नहीं उजागर,
उसका मजहब ही है प्याला
तूफ़ानो में धाम है जिसका
उस जल तरंग मे है हाला !!
*
प्यासा एक किनारे है
और एक किनारे साकी है
अनंत युगों सी विस्तृत सी,
एक समुद्र है मधुशाला !!
~~***~~
(61)
अनंत जीव और जिज्ञासा
जिसके अनुभव में है हाला
जीव-जीव का प्रीत झलकता,
पड़े नहीं उस पर ताला !
*
बुद्धिजीवि जाओ कभी
तुम प्रेम-वासना को समझो,
मृत्युलोक में मानव-धर्म ही
उचित पंथ है मधुशाला !!
~~***~~
(62)
कभी बुरा हूँ कभी भला हूँ,
मैं भोला बस पीने वाला
कभी चंचल मन मचले,
दिल छु जाये साकी बाला !
*
धर्म हमारा चंचल मन को
वश में रखना है लेकिन,
मदहोशी को खूब लुटता,
पागल मन है मधुशाला !!
~~***~~
(63)
गंगा-यमुना का मंथन हो
मिलेगी दृष्टि की माला !
साकी को सम्मोहीत कर
जब मचलेगी हर मय-प्याला !!
*
चारो ओर मधुरता होगी
मयखाने के प्रांगण में…
हर्षित होगी सर्व-दशाएं
काल-चक्र है मधुशाला !!
~~***~~
(64)
मन मुर्क्षित और चेतन शून्य…
यह व्याकुलता की है प्याला !
कोई आंच नहीं, कोइ साँच नहि,
हम ढूंढ रहे माणिक हाला।।
*
जो सत्य शिवा सी सुन्दर हो,
वो साँझा-उषा का मिलाप !
जो धड़कन मे रम जाती हो
शिव की प्रसाद है मधुशाला !!
~~***~~
(65)
दिव्य ज्योति की आभा,
मुस्काती भोली मधुबाला !!
साकी बेच रही हो सपने,
और खिले सब पीनेवाला !!
*
जाने अनजाने मैंने भी
फिर सपनो से संदूक भरा,
धीरे-धीरे ज्ञान की गाथा
स्वप्न बोध की मधुशाला !!
~~***~~
(66)
अधरों में लिए मुश्कान सकल
आयी मिलने साकी बाला !
मदिरा मय मदिरालय में था,
फिर फौहार उठा ऐसी हाला ।।
*
साकी सखा है, समय साक्षी
हाला सुराही पी के सुमधुर…
देख रहा मैं अनंत अविनाशी…
कहीं दूर क्षितीज पे मधुशाला।।
~***~
(67)
स्वर और राग की उछल-पुथल
जो मन में उबल रही हाला
काव्य अकेली अंगना में,
मेरी गान पे महक रही प्याला !
*
मैं भी स्वर में डूब-डूब
बहुरंगों में रंग जाता हूँ।
प्यासी मुझको छोड़ कहीं
संगीत सुनाती मधुशाला !!
~~***~~
(68)
एक हाथ में विष की हांड़ी
एक हाथ में मय प्याला
एक आँख को मौत रिझाती
एक आँख को मधुर हाला !
*
जाने कौन दिशा में कस्ती
नदिया पार कराएगी ।
कभी सुखद है, कभी दुखद,
अद्भुत है मेरी मधुशाला !!
~~***~~
(69)
एक सवेरा साक्षी है
वह एक हसी सुन्दर बाला
वह संध्या में इठलाती है
हाथों में लिए पावक हाला !
*
नयन-नयन का जोर यहाँ
हर एक मंजिल बन जाएगी ।
एक प्यार की कस्ती अपनी
पार करेगी मधुशाला !!
(70)
साकी पूरब में बैठी हो
और मिले नहीं हमको हाला।
वो सादगी की कोई मूरत हो
और दिल से जुड़े नहीं प्याला।
*
हर बाजी हमने हारी है,
प्रियवर तुझे रिझाने में
जब लौट चला प्यासा घर को
तब प्यास बुझाती मधुशाला !!
~~***~~
(71)
(76)
दीप जले हर आँगन में अब,
अभिषेकों की दिव्य कला !
मदिरा-मय मदहोश विहग है,
सुदूर क्षितिज, बहके बाला।
*
हम ताक लगाए बैठे है कि
फुलझरियों से खिले पहर…,
आतिशी से मन का ज्ञान मिले,
संक्षिप्त भाव की मधुशाला।। 76 ।।
(77)
व्यथित सुराही में हाला
स से सब संघर्षरत प्रिये !
क्या साकी, क्या पीनेवाला !!
*
नववर्ष में सब प्रण लेते हैं
हमने भी ली एक वचन !
खूब बताये पी के ‘पंडित’
कर्म धर्म है मधुशाला !!77!!