जो तौर है दुनिया का, उसी तौर से बोलो
ये बहरों का इलाका है, जरा जोर से बोलो !
कुछ कल की बातें हैं, उसे आज मत तौलो
सिक्के बनाने के वास्ते जज्बात मत तौलो !
मेरा क्या? उड़ता पंछी हूँ, तुम अपनी बात बोलो
मुझे कैद नहीं कर सकते, चलो कुछ और बोलो !
साहस पे यकीन नहीं, किसी की बंदगी पे बोलो
कई मुरादों के कफन की शार्मिन्दगी पर बोलो।
कोई बेहाल है कि किस्त चुकता ही नहीं होता
उसका वक्त कैसा चल रहा? जा पूछ कर बोलो।
कोई अंधे को आंखे दे नहीं सकता जमाने में
मगर गूंगे को दी आवाज़ तो भाई जोर से बोलो !
वो कहते हैं कि बहरों का इलाका बेशरम भी है।
मगर ये दोस्त अपनी ठहाके का – शोर भी गजब है।
Author: Prabhat Kumar