दिल्ली देश की मर्यादा है, धड़कन है,
आजादी का खुशबू भरा समर्पण है।।
आदि काल से अबतक इसका कोई जोड़ नहीं,
शाशन और प्रशाशन सबका, अंतिम तोड़ यही !
लाल किले पर बैठा मेने देखा एक नजारा था…
सारी दुनिया देख रही थी अपना झंडा प्यारा था।
कुतुबमीनार के जंजर खंडहर में भी शोभा न्यारी थी
वहां की मिट्टी की खुशबू तो ताजमहल पर भारी थी
संसद की सुंदरता का भी करता मैं क्या खूब बखान
छोड़ो यारों आल-जाल का बना हुआ यह भव्य मकान
राष्ट्रधीश के आलय के सुंदरता की क्या बात कहे ?
मुग़ल बगीचे की शोभा में उनकी महिमा खूब खिले !
राजघाट पर देख समाधी गाँधीजी की, मन में क्षोभ हुआ
अंग्रेज हुकूमत के विरुद्ध की क्रांति का, तब बोध हुआ !
दिल्ली के जो युवा छात्र है, मैं मिलता कैसे वेश में,
उनके मन को कैसे परखता? बाते करना शेष है।
मुझको दिल्ली की जनता से घुलना मिलना बाकी है…
केजरीवाल और मोदीजी का किस्सा सुनना बाकी है !!
Authored by Prabhat Kumar