दिल्ली देश की मर्यादा है, धड़कन है, आजादी का खुशबू भरा समर्पण है।। आदि काल से अबतक इसका कोई जोड़ नहीं, शाशन और प्रशाशन सबका,
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गुब्बार बना रखा है, कोई घुमार बना रखा है… दो पल का मिलना और मिलके फिर बिछुड़ना, तेरी आशिकी ने मुझको लाचार बना रखा है
यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता ! ********************************** नर-नारी का विषम पात्र है मन में, एक कलश पर अलग है प्याला… अबला नारी दीन-हीन कृपा-विहीन,