एक दौलत की भूख थी, एक तेरे प्यार का,
जब सोहरते मिलीं तब तेरा प्यार था।
फिर मौन हुआ मन, मैं प्यासा रहा…
फिर शर्मसार था जब कुहासा हुआ !
जब सोहरते मिलीं तब तेरा प्यार था।
फिर मौन हुआ मन, मैं प्यासा रहा…
फिर शर्मसार था जब कुहासा हुआ !
वो समझ सके न गम, और न मेरी आरजू
जो हमने सहज रखा था बेवजह गुफ़्तगू
जो लुप्त हो गई एक अँधेरी रात की तरह!
छमक गई, बहक गई – बरसात की तरह!
कोई उलझने नहीं, अब न रंजिसें रही,
ख्वाब धुंधली रही फिर भी चुमता रहा।
जो नहीं पा सका, वो टटोलता रहा…
फिर एक फुहार था जिनमें भीगता रहा।
कोई उलझने नहीं, अब न रंजिसें रही,
ख्वाब धुंधली रही फिर भी चुमता रहा।।
~Prabhat Kumar