अक्सर उनको भाया हूँ…

मुझे न समझो एक अनाड़ी 
मैं मनमौजी काया हूँ। 
जो मुझको देखें एक आँख से 
अक्सर उनको भाया हूँ।

गली-गली में चर्चा होती
मैं सदभाव सुनाता हूँ।
ग़ालिब और बच्चन की
वंदन श्वेत सुरों में गाता हूँ

मुझको कोई बैर नहीं है,
जलते भूनते कंकालों से
मुझको थोड़ा धैर्य नहीं
छू लूँ अम्बर मैं बौवालों से

फिर भी छाती छप्पन इंची
छिपा रक्खी है छत्तीश में,
लुटा चूका मैं हृदय सुनहरा
तेरह बाइश कश्ती में।।

Meri Madhushala | Prabhat Kumar
(10:05 pm IST, 17 April 2018)

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