बदला नहीं जमीं है न बदला है समन्दर
कलियां खिलेंगी अब भी कुछ खास है ये मंजर
कलियां खिलेंगी अब भी कुछ खास है ये मंजर
बादल की गुफ़्त गु में गर बदली है हवाएं
तो उन हवा से कह दो बदलेगा मेरा अंतर!
बदलेगा मेरा अंतर!!
एक ख्वाब देखें हम तुम…..
बंजर जमीं पे चलकर
वायु की वेग दलकर
अग्नि की ऊष्मा सहकर
बारिस की आस लेकर
क्या खूब खाया ठोकर
गिरते रहे संभलकर
दिल टूटता था अक्सर
वो खाश ख्वाब खोकर…
बादल की गुफ्तगू पर
हम ख्वाब को लुटाते
बदले हुए नजारों को
जश्न-ओ-जहां बनाते
मूर्क्षित दिलों की सुनते
और गान उनका गाते
प्यालों में रंग भरकर
हर जाम हम पीलाते
बदलना शौख है अब इस जान-ए-महफ़िल की ज़माने में
कि रुखसत हो नहीं सकता कोई जो छुगया दिल को…
तेरी आवाज़ में मैं हूँ, मेरा हुंकार तेरा फ़लसफ़ा बनता
मुहब्बत और हसीं लम्हों को मैं शब्दों में यू बुनता…
दुआ करता हूँ मैं, रंगीन होगी सादगी तेरी, तेरे ही कारनामे से
कि हर शाखा पे रसीली-सी रंगोली गुलों ने खुद सवांरा हैं…
रंगी है सारी दुनिया – रंग-बिरंगे रंगों की होली यहाँ पल-पल
कभी अवशाद ने रंगा, कभी उल्लाश ने रंगा, मेरे नगमे रंगीले हैं…
पलक झपका तो देखा सादगी बिखरी पड़ी उल्लास में इतरा रही हो
सात रंग की इन्द्रधनुषी ज्वाला में ज्यों होलिका झल्ला रही हो…
Author: Prabhat Kumar