कैसे कहूं कि तेरे याद में,
रातें गुनगुना कर गुज़ार लेता हूं।
मन में होती है हलचल हर पल
तुझको नज़रों में जो उतार लेता हूं।
रातें गुनगुना कर गुज़ार लेता हूं।
मन में होती है हलचल हर पल
तुझको नज़रों में जो उतार लेता हूं।
तुझ से मिलने की जिद तो की थी एक दिन
पर क्या कहें ये तो बस फ़साना है कल का…
आज फिर से ज़िन्दगी नाजुक कदम पर है
सरक न जाए धरती, पड़ने को कदम धरातल पर है।
तेरी चाहत में कोई कमी न थी
यूं ही न मैं तेरा दीवाना हुआ।
तुझको पाने के खातिर बढाए जो दो कदम
ठहरे नहीं डगर, बदले तेरी रूश्वाई मिली॥
जमाने का था सीतम या तेरी बेरूखी,
मिलने को तरस गये वो तेरे पाक इरादे।
गुमनाम हो गया उसी महफिल में प्यारे
जहाँ होते थे सैकड़ो नाम हमारे॥
Author: Prabhat Kumar