तेरे नयन

तुम रूठ चले दरिया बन के
हम अब भी तुम्हारे कायल हैं
यूं देखा मत कर ऐ कातिल
हम अब भी शायद घायल हैं।

तेरे नयनों की चिंगारी
क्या खूब चमकती इस वन में
मुझको ये सताती तरसाती
ये आग लगाती यौवन में।

मैनें तुझको देखा अब तक
तु हर पल खिलती जाती है
तेरे नयनों की अभिरामी
क्यों थीरक-थीरक कर गाती है?

बातों मे उलझा देती तु
क्यों करती सबका चैन हरण?
किसको दोषी कहते हम सब
तेरी जिह्वा या तेरा नयन?


तु नयन झुका शर्मा जाती
तब खिलता मेरा कोमल मन
ज्यों नयन लड़ा इठला जाती
तब नाचे मृग सा पुरा तन।

क्यों रूठ गई तू चितवन से
क्यों काजल तेरे लोम हुए
तेरे नजरों के एक झलक को
हम पागल और विलोम हुए।


Author: Prabhat Kumar

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