मस्ती का गाना

क्या खूब जिन्दगी है
क्या खूब है जमाना
क्या खूब है जवानी
क्या खूब है तराना…

मस्ती झलक रही है
मस्ती का है ये गाना
प्यालों मे रंग भर कर
लिखता हूं मैं फ़साना

वो क्यों करें शरारत?
साकी करे बहाना…
ये कैसी जुल्म यारों
कोई मुझे बताना…

क्यों रूठता है कोई…
पड़ता है क्यों मनाना?
कातिल हो गर जमाना
फिर कैसे दिल लगाना?

नज़रों मे उनकी चाहत
नज़रों का मैं दीवाना
जुल्फ़ों की वो सजावट

और उनका मुस्कुराना

क्या प्यार है हमारा

तुम रूप का खजाना
ये प्यास है हमारी
प्यासों का ये ठिकाना

पीते-पीलाते हम तुम
बस दिल से दिल लगाना
सांसो मे सांस भरकर
फिर से गले लगाना…

सुसुप्त इस समन्दर में
तूफ़ान है उठाना…
इन प्यार के नगमों से
एक आरजू जगाना

बस अपनी इस जवानी
को प्यार है लुटाना
जैसा भी हो तराना
बस आज मुझको गाना।
बस आज मुझको गाना…


Author: Prabhat Kumar

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