सागर में गर तूफान है

कुछ तो कहो कहते रहो
करते रहो आवाज तुम
हम से मिलो सबसे मिलो
किंचित न हो उदास तुम

कहना ही तेरा काव्य है
इस काव्य का ही भाव है
मिलना तेरा मुश्किल में है
मंझधार पर जो नाव है।

ये काल फेंका जाल है
फंसता ये अपना गांव है
आदर्श के पथ चुभ रहे
और आज नंगा पांव है।

कैसे कहूं किसको कहूं
मैं देख सबको चौंकता
दिल मेरा पत्थर नहीं
मैं मन ही मन हूं भौंकता।

काव्य से मुझको कोई
करना नहीं संग्राम है
इस पार ही जी लेंगे हम
सागर में गर तूफान है।

आवाज मेरी सुन रहे वे
जो मानते मुझको सखा
मिलते रहे वे ख्वाब में
वे सुन रहे मेरी व्याथा।

आदर्श के पथ चुभ रहे
तो तोड़ दे जंजीर को
ले कफ़न सर पर उठा
और मोड़ दे तक्दीर को।

कब तक जिओगे ख्वाब में
विरक्ति अग्नि आग में
तुफान थमने को नहीं
सारा शहर संताप में…

आज दिल की धड़कनों में
एक सुलगती आग है
हम गुमशुदा तुम खुशनुमा
दोनो की अपनी राग है।

तुम क्रांति का देते सबब
विरक्ति अपनी आग है…
बस मान कर चलता रहा
पतझड़ में अपनी बाग है।

सुना हुआ संसार तो
एकांत ही जी लेंगे हम
प्रयत्न तो करते रहेंगे
अग्नि से खेलेंगे हम।


Author: Prabhat Kumar

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