पल चींखती कलम से

कुछ पल जिन्दगी के
गम के बादल बन के
खामोशियों की साजिस
में स्वयम् आज जलके।

सबको रिझा रही है
रिश्तों में आज रम के
ये पल जिन्दगी के
अबकी कहावत बनके।

अनजान पथ पर चलके
मिलते रहे हैं झटके
खिलती नहीं हँसी जब
आंसु के मोती चमके।

क्या खुब ये सफर है
पल पल ठहर-ठहर के
ठहरी हुई नजर है
नजरों से तीर चलके।

क्या खुब है नजारा ज्यों
बात निकली दिल से
अनुभूती अपनी सारी
रूठे पलों से झलके।

किसकी है ये कहानी
और कौन जीते पल से
कलमों की है जुबानी
पल चींखती कलम से।


Author: Prabhat Kumar

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