भर-भर के मदिरा मिले तुझको
मैं एसा गीत लिखूंगा अब
तुम भोग लगा न पाओगे
पीने को मिलेगी गंगा जब !!
*
ये मदिरा अपनी शक्ति है
ये गंगा अपनी भक्ति है
सौ क़ुरबानी देकर के भी
आबाद रखंगे तुमको अब !!
*
साकि की अभिव्यक्ति भी
उन मस्ती की फुलझरियो सी
मैं उनको आज लुटाऊंगा
गाकर नगमों से मधुर तलब !!
*
कोई आस लगाये बैठा है,
कोई दिल को गवाएँ बैठा है
तेरे मंजिल पर खार सही
मैं उसपर फुल खिलाऊँ अब !!
*
मदिरालय में जब प्यार बीके
आशुं से करता क्रय-बिक्रय
खुशियों के घेरोंदे खूब ख़रीदे
धरती पर प्यार बिखेरे अब !!

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