उदासीन वो होते है जिन्न्हे लड़ना नहीं आता

क्या रूठे पल से रूठना 

क्यों ओझे कल को भूलना ?
मस्तक पर श्रृंगार है सबका 
आभा जिसकी महि नहीं !
जब घनघोर घटाएँ हो और 
किरणों का आशार न हो !!
एक आगंतुक ही तब अाये,
सम्मान करो उस अनादि का। 
जिससे अबतक जूझ रहे हो 
उस अंत काल और आदि का। 
आदि काल से ले नहीं सकते 
अग्रिम को कुछ दे नहीं सकते 
याद करो उस क्षण जब तुमने 
आसमान को समतल कहकर 
उसका भी अभिमान हिलाया। 
सागर को भी गहरा कहकर 
उस में जाकर गोता खाया !

समय सबसे तरल, और प्रस्तर, शक्तिशाली है 
जरा सा थम जा पी के, अभी तरना नहीं आता !
समय की धार पर मंजिल की नाव मिल ही जाएगी 
उदासीन वो होते है जिन्न्हे लड़ना नहीं आता !!
Author: Prabhat Kumar

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