एक भाग्य था एक सितारा पाटलिपुत्र में गुलशन प्याराकुल का प्रीतम एक धरोहर वह सुगम मनोहर प्रेरक ताराजो मंजिल से अनजान चला ले मन का
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क्या रूठे पल से रूठना क्यों ओझे कल को भूलना ? मस्तक पर श्रृंगार है सबका आभा जिसकी महि नहीं ! जब घनघोर घटाएँ हो और किरणों
गुनगुनाती थी पहर और सतह भी ठोस थी निहारती थी नजर, और पलक पर ओस थी कुछ वाद न विवाद था कैसा गजब संवाद था
काल करे सो आज कर, आज करे सो अबपल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब !! – संत कबीरा आज करे सो काल कर, काल
एक अध्ययन किया है विदेश में आकरक्या सुनियेगा जरा अपना सर झुकाकर ??? यूरोपे को कहूँ स्वर्ग का सफ़र और इंडिया?हा हा हा !! और
कुछ पल जिन्दगी केगम के बादल बन केखामोशियों की साजिसमें स्वयम् आज जलके। सबको रिझा रही हैरिश्तों में आज रम केये पल जिन्दगी केअबकी कहावत