जाने अनजाने में मैं –
क्यों भूल जाता हूँ।
मेरी प्रियतम मधुशाला !!
क्यों मैं डूब जाता हूँ !
प्यार के रंग अनेको हैं और
मैंने तुमको देखा है।
कभी नजरों से,
कभी आहट से,
कभी एक पिपासा सा
कभी दिल की चाहत से !!
तो सर्वत्र जिज्ञासा सा !!
फिर भी तुम से मिले बिना
मैं घुल मिल जाता हूँ !!
दो संवाद नही दोगे
उल्फत के अंगारों को !
अब बिना कहे दिल की संवाद
सब जान जाता हूँ !!
मैं मधुघट का एक प्याला हूँ,
मुझको नहीं है कोई गम
मैं मान जाता हूँ !
इस मधुघट के मधुशाला में
मैं डूब जाता हूँ !
~प्रभात कुमार~ 10 Feb 2016