‘गम’, मीत! मिटादो जीवन का !


एक लव्ज बनो तुम इस पल, ये पल गमगीन है जीवन का 
तुम एक पहेली बनकर के, ‘गम’, मीत! मिटादो जीवन का !! 
तुम अक्षर में, तुम वाणी में; तुम संगीत बनो दो जीवन का,
हम तुमसे ही सीखेंगे वो विधियां, वे सस्त्र सकल औ अंगारे,
तुम स्वच्छ भाव से आ जाना जब पी के विनियमित पुकारे !!

Author: Prabhat Kumar

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