अनदेखी अनजानी
वो मनमोहक मनमानी
वो प्यासी मैं पानी
मैं वीणा वो वाणी !!
वो मनमोहक मनमानी
वो प्यासी मैं पानी
मैं वीणा वो वाणी !!
इस क्षण मैं वैरागी
फिर क्या सौन्दर्य जवानी
मैं कर्म योग का भोगी
कुर्बान करूँ अभिमानी
फिर क्या सौन्दर्य जवानी
मैं कर्म योग का भोगी
कुर्बान करूँ अभिमानी
पग पग हो पतवार
प्रखर तलवार रही संग्रामी !!
प्रखर तलवार रही संग्रामी !!
— प्रभात कुमार