(A non-traditional poem which talks about the inefficiency of time in certain exceptional cases, sorry, no reasoning, just enjoy the poem 🙂 ) क्या वक्त
Category: optimism
दामिनी देश की गरिमा है करोड़ों के मन का उबाल है पत्थर में दैविक उछाल है कानूनों पर घिसती तलवार है संवेदना का साक्षात्कार है युवाओं की ललकार है…दामिनी घायल
आजाद हूँ मैं, आबाद हूँ मैं तेरी नज़रों का पुख्ता ताज हूँ मैंआवाज़ हूँ मैं, अंदाज हूँ मैं काजल सा काला, कोई राज हूँ मैं…
कुछ तो कहो कहते रहोकरते रहो आवाज तुमहम से मिलो सबसे मिलोकिंचित न हो उदास तुम कहना ही तेरा काव्य हैइस काव्य का ही भाव
सोच निराली तकनिक नयामानो कुछ करने को दिल में ठन गया। मैं करूं? न करूं? क्या करूं? कुछ कर न सका बस सोच रहा हाय