आजाद अपना देश है पर हो गए सब बेजुबान
महलों में रहनेवाले भी अब हो गए खुद के गुलाम…
सत्ताधारी नाग है और नियति इनकी साफ है,
“लूट लो ये देश..” इनका सारा जुल्म माफ है…
इनका है कानून, इनकी शक्ति, इनका फैसला
करोड़ो के मत ने इनको दे रखा है हौसला…
लुट-भ्रस्टाचार अब कानून का एक अंग है,
आम जन सब त्रस्त है, इनके लिए उमंग है….
अबकी बजट में अरबों रूपये का नया प्रस्ताव है
मुफ्त होगी साग सब्जी और बच्चों की पढाई
स्कूलों में भोग होगा, मंदिरों में योग होगा…
और गरीबों में बटेगी मुफ्त में सारी दवाई ||
वर्ष अब ढलने को है और देखते हम आकड़ें…
कुछ भूखमरी से मर रहे, कुछ के धड़कन बढ़ रहे
शिक्षा उनकी ख्वाब ही है, मुफ्त बस कागज में है
है उदासी हर तरफ, मातम हमारे घर में है….
क्या हुआ उन अरबों के फंड का? उस प्रस्ताव का
किसको हुआ फायदा, किसकी गरीबी दूर हुई….
वह फंड देशवासियों के आयकर से तैयार हुआ था
और उससे राजनेतावों की गरीबी दूर हो गई…
कितनी सफाई से लूट लिया.. हाय !!
किसको नुकसान हुआ, कितना नुकसान हुआ…
गरीब जहाँ थे…. वहीं रह गए
किसी ने हिम्मत नहीं की… कोई कुछ बोला ही नहीं
किस्मत से जो मिल गया सो मिल गया
उन्होंने और कुछ टटोला ही नहीं….
मध्य वर्गीय ने तो असल में कुछ खोया है…
आयकर भी देते गए और न सुगुण से सोया है
सत्ताधारियों ने लूट लिया इनको और कहते हैं
“धीरज रखो बंधुओं – देश चमक रहा है….”
और किसी की क्या बताएं… और क्या समझाएं
सुशासन लाना है तो अपने आप को समझाएं
किसी भी गलत छवि वाले व्यक्ति को मत न दें..
और ससक्त जनलोकपाल पर चर्चा अवश्य करें !!
Author: Prabhat Kumar