मौत के जो खौफ से इन मुश्किलों में जी रहा
आशुओं की उष्म हाला आज तक वो पी रहा
अब जरा हिम्मत करो और तोड़ दो जंजीर को
ले कफ़न सर पर उठा और मोड़ दे तकदीर को…
आशुओं की उष्म हाला आज तक वो पी रहा
अब जरा हिम्मत करो और तोड़ दो जंजीर को
ले कफ़न सर पर उठा और मोड़ दे तकदीर को…
यह सम्मा जलती रही है उग्र रक्त के द्रोह से,
आतिशियों के शोर से और तेरे मन के मोर से…
यू कभी झुकना नहीं और मांग हक़ तू जोर से…
बारिशें अक्सर हुई हैं, सूखे वनों की शोर से !!