लोकतंत्र शोक शब्द से ग्रसित
अर्थशास्त्र काले धन से द्रवित
इमान जन बेच धन्य हो रहा
अर्ध-कौम भूख से ग्रसित रहा,
अन्न त्याग देश भक्त लड़ रहा
अंधेर आग में सभी झुलस रहा
आम जन, चोर गण एक सा
अग्नि देख देश में, भ्रमित रहा
यह अजान युद्ध जोर शोर से
हर सियासी संत को जकड रहा
विराट लोकतंत्र का महायुवक
अग्नि के लपेट में चहक रहा
यह अजान दृश्य है स्वराज्य की
चक्रभ्यु में फंसे जन-समाज की
जब भ्रष्टतंत्र प्रहार से चोटिल हुई
ये सफ़र समृधि की जटिल हुई !