हज़ारों सवालों से अच्छी है खामोशी तेरी…
न जाने कितने सवालों की आबरू रखी !!
शोकसभा में भारतवर्ष के सरपंच बोले…
टूटे हुए दिलों को मरोड़ती आरजू रखी !!
हजारों नुमाइशें करके भी मिली नहीं ख़ुशी…
सवालों को कैद करके अपनी आबरू रखी !!
कीटों के संरक्षण में हुआ शिकार जो जमाना…
देश की दौलत भी कहीं जाकर गिरवी रखी !!
खून पीते हैं जानवर और उनसे भी शातिर
काबिल-ए-तारीफ लुटने की एक साजिश रखी !!
भिखमंगे को मौत और मौत को महक
पर न हो कफ़न नसीब ये गुजारिस रखी !!
मेरे मयखाने में छा गयी है मायूशी अभी…
मेरे जाम में निर्दोष लहू की पिचकारी रखी !!
आभारी
प्रभात कुमार
प्रभात कुमार