दोस्तों!!
मधुशाला की नवीनतम पंक्तिया आपके सामने पेश कर रहा हूँ….
इन पंक्तियों से मैं मेरी मधुशाला का कवर पृष्ट के मूल की पुष्टि करने की चेष्टा करना चाहता हूँ.. !
हमे सौंदर्य का केवल प्रशंसा ही नहीं करना चाहिए, उसका सम्मान और सुरक्षा भी करना चाहिए…
हाल ही में आयरलैंड में स्त्रियों की मानशिक एवं व्यवहारिक स्वतंत्रता का दर्शन करने के बाद मुझे हमेशा यही लगता है – आज हिंदुस्तान आजाद तो है, मगर सिर्फ human के लिए woman के लिए नहीं…
मैं जयशंकर प्रसाद जी की इन पंक्तियों का पूर्णतया समर्थन नहीं करूँगा –
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वाश रजत नग पग तल में….
पीयूष श्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में !”
क्योंकि इससे भी पहले मैं यह कहना चाहूँगा.. –
“नारी तुम देश की धड़कन हो..
तुम कोमल मन की वंदन हो..
मत खोना तुम विश्वाश प्रिये !
तुम सप्त सुरों की सरगम हो !!”
मेरी मधुशाला
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रूप-समीक्षा करे परीक्षक
श्रृंगारों की अनुपम माला !
साकी की सुंदरता का भी
हुआ प्रसंशक पीने वाला !!
साकी का सम्मान-सुरक्षा
मयखाने की एक कशिश,
नारी की अभिवयक्ति भी है
कोकिल मेरी मधुशाला !!
Author – Prabhat Kumar