उसको भुलाने के लिए हमने जो किनारा माँगा,
लोग समझते रहे हम अपने जाम मेँ डूबे हैं !
हमने तो चोरों को कल शाम दावत दे रखी है,
कुछ तो ये भी कहते हैं – हम इमान में डूबे हैं !!
हौसलों की जंग जारी है अब कोई दीवार नहीं
फिर लुटेरों ने सेंध मारी, हम अंधकार में डूबे हैं !
ए मेरे खुदा!, मेरी कोशिश में क्या कमी रही,
जंग लड़ने आये थे, और अब अहंकार में डूबे हैं !!
डूबती कश्ती से जो निकले वे प्यार के तड़प थे,
फिर उसी को डूबोने वहीं हम मंझधार में डूबे है !
आशुओं की चिंगारी से जो आग लगी पुरजोर,
उसकी ही ज्वाला में हम दिल थाम कर डूबे हैं !!
ख्वाइशों का पतन और उससे भी जटिल मांगें,
सबकुछ किये कुर्बान हम तो रहमान में डूबे हैं !
फिर मुल्क की मुहब्बत औ उसकी ही हिफाजत
का एक नया नग्मा लिख हम फरमान में डूबे हैं !!
Author: Prabhat Kumar