लिखता हूँ मैं कुछ ऐसा नगमा ही लिखता हूँकि हर पीनेवाले को मैं मधुशाला ही दीखता हूँ…!!मेरी आवारगी की तह में जाकर देख लो तुम
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काव्य कला को पीने वालों कल्पित कल में जीने वालों सात रंगों में रंगी हुई अपनी लीला है.. हो जाते बदनाम, अगर सम मधुशाला है…
भर-भर के मदिरा मिले तुझको मैं एसा गीत लिखूंगा अब तुम भोग लगा न पाओगे पीने को मिलेगी गंगा जब !! * ये मदिरा अपनी
(1) Engineers की है फौज भरीManagers सब पीनेवालाworkers सारे रूठ गएवेतन वितरण में घोटाला*मैं कैसे computer से रुठुंEmail से है inbox भराकल रात न office
(1) फोकट का फाटक खुलवाविस्तार करूं मैं बेतालासाकी से शुरूआत करूं मैंदे संतों को मय-प्याला,*ऐसा स्वांग रचूं मैं पी केअपने इस मदिरालय मेंझुम-झुम सब नाचें
मेरी मधुशाला(new) मेरे मार्ग पर विजय सरिखेआभूषण हो पुष्पक माला।मदिरा पर हों छंद मेरेछाए न दिल पर साकी बाला।। हुआ समर्पन मदिरालय मेंआज मेरा प्यारा
मेरी मधुशाला(old version)प्रियतम्!मैं आगे बढता हूं,मेरी लगाम् साक़ी बाला ।रंजित हूं मैं मदिरा पीकर,है जो कमान मेरी हाला ॥ जीने का अभिलाषी हूं मैं,मस्त मुहर्रम