जो तौर है दुनिया का, उसी तौर से बोलो ये बहरों का इलाका है, जरा जोर से बोलो ! कुछ कल की बातें हैं, उसे
Author: Prabhat Kumar
एक लव्ज बनो तुम इस पल, ये पल गमगीन है जीवन का तुम एक पहेली बनकर के, ‘गम’, मीत! मिटादो जीवन का !! तुम अक्षर में, तुम
जाने अनजाने में मैं – क्यों भूल जाता हूँ। मेरी प्रियतम मधुशाला !! क्यों मैं डूब जाता हूँ ! प्यार के रंग अनेको हैं और
क्या रूठे पल से रूठना क्यों ओझे कल को भूलना ? मस्तक पर श्रृंगार है सबका आभा जिसकी महि नहीं ! जब घनघोर घटाएँ हो और किरणों